मेरी छाया...
हाँ, वो मेरी छाया है...उसकी ही ऊँगली थामकर मैंने इस दुनिया को पहचाना हैवो ही मेरी परछाई है, मेरा साया है।चाहे खुशी का लम्हा हो,या दुःख का हो आलम,कदम से कदम साथ उसने मेरे मिलाया है।हाँ, वो ही मेरी परछाई है, मेरा साया है।पर लगता है डर कभी कभी,इस काले घने अंधेरे में,कहीं खो न जाए यह साया,कहीं अलग न हो जाए ये मुझसे।पर जहाँ लगता है डर एक और इस बात से, तोह दूसरी और,उसके होने से यह डर कम सा होने लगता है,और झूम उठता है मेरा मन इस बात पर,की वो ही मेरी परछाई है, मेरा साया है।
3 comments:
ek arse baad itni achhi kavita dikhi hai..bravo !!!!
I like thi$ one.. ..realy good :)
@ashwini and rishabh:
Thnkx..
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